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कविता

किसकी आँखों से

अनूप अशेष


किसकी आँखों से
गिर आई
यह रात
कजरौटे में काजल पारे।

पूरा आकाश उतर आया
जैसे छत पर,
एक दिया जला
पश्चिम कोने
नाखून धरा हो ज्यों खत पर
आँगन के लीपे गोबर में
नीदों के
गोबरैले सारे।

स्तब्ध समय यह प्रेत प्रहर
घर वन सोया,
किसकी उँगली में
सरक रहा
एक जला तवा धोया-धोया
आँखों के उगते बिंब लोक
तोड़ कर कोई
क्यों कर हारे।

 


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